
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी और कांग्रेस की मौजूदगी को काफी मजबूती देने वाली दिव्य स्पंदना राजनीति में आने और सांसद बनने से पहले कन्नड़ सहित दक्षिण भारत की कई भाषाओं की फिल्मों में धूम मचा चुकी हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ले कर किए ट्वीट की वजह से भी वे विवादों में रही हैं। पेश है उनसे बातचीत के अंश-
एक समय राहुल गांधी सीधे सोशल मीडिया पर आने से परहेज करते थे। ट्विटर हैंडल भी ऑफिस ऑफ आरजी (राहुल गांधी का कार्यालय) था। आज राहुल व्यक्तिगत फोटो डालते हैं। कैसे आया बदलाव?
ठीक कहा आपने। एक समय सोशल मीडिया पर एक ही अफसाना छाया रहता था। हमारे लोग सक्रिय नहीं थे। फिर हमने तय किया कि हमें इस पर कब्जा तो नहीं करना लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से इस माध्यम पर अपनी आवाज रखनी है।
जब मुझे नियुक्त किया गया तब मैं कोई एक्सपर्ट नहीं थी और ना ही आज हूं। लेकिन काम करते हुए बहुत कुछ सीखा है। राहुलजी ने बहुत आत्मविश्वास दिलाया। उनके विचारों और ब्लूप्रिंट पर काम कर के सीखा। उन्होंने शुरुआत में ही कहा
था कि जो भी हो हमें सच बोलना है। हमारे सोशल मीडिया टीम का यही आधार-वाक्य बना। अब हमारी रणनीति फेक प्रोपगंडा का मुकाबला करना है।
एक समय राहुलजी जो कहते थे, लोग उसका मजाक उड़ाते थे। हंसते थे। लेकिन नोटबंदी हो या रफाल हो, बाद में लोगों को लगा कि राहुल सच बोल रहे थे और हम ही देख नहीं पाए।
दूसरी बात है कि हमने संभवतः ऐसी सामग्री बनाई जो लोगों को पसंद आई। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आने वाले लोगों को बहुत गंभीर सामग्री नहीं परोसी जा सकती। इसलिए हमने वीडियो, हास्य और चित्रों का खूब सहारा लिया। बहुत से लोग आम तौर पर राजनीति को पसंद नहीं करते, उन्हें भी जोड़ना था। जब उन्हें लगा कि हम उन्हीं की बात कर रहे हैं तो वे भी जुड़े और अब सोशल मीडिया का नैरेटिव पूरी तरह बदल चुका है।
लेकिन राहुल को इसके लिए कैसे तैयार किया, खुद ट्विटर पर आने के लिए?
राहुलजी हर चीज को ईमानदारी और संजीदगी से लेते हैं। उन्हें लगता था कि अगर कुछ उनके नाम से सोशल मीडिया पर डाला जाए तो वे उसके लिए पूरी तरह जिम्मेवार होंगे। साथ ही उन्हें लगता था कि अन्य जरूरी काम के बीच इसके लिए समय निकालना मुश्किल होगा। लेकिन एक समय आया जब उन्हें लगा कि यह करना ही है और उसके बाद आप देख सकते हैं कि उनके ट्वीट कितने पसंद किए जा रहे हैं।
राहुल के बहुत से ट्वीट हिंदी में होते हैं। यह किसका फैसला है?
राहुलजी का मानना है कि अगर देश के सभी लोगों तक पहुंचना है तो अलग-अलग भाषा का इस्तेमाल करना होगा। पहले ट्विटर पर बहुत कम लोग थे और उस समय इसकी भाषा अंग्रेजी ही थी, लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं। क्षेत्रीय भाषाएं सभी प्लेटफार्म पर बढ़ रही हैं। आज भी इंस्टाग्राम की भाषा अंग्रेजी है, लेकिन फेसबुक पर हिंदी और तमिल ज्यादा है। कई बार दूसरे भाषा-भाषी कहते हैं कि हिंदी क्यों, हमारी भाषा में कीजिए।
I began my 2 day visit to Germany with a speech at the Bucerius Summer School in Hamburg, yesterday. Today, I am in Berlin to meet members of the German Bundestag, NGO’s & Business Leaders. I will also be addressing a public meeting organised by the Indian Overseas Congress . pic.twitter.com/11omr91GI3
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 23, 2018
एक बार उन्होंने अपने पालतू कुत्ते की फोटो ट्वीट की। बहुत मजाक बनाया गया...
सोशल मीडिया का कोई तय नियम नहीं। इसमें प्रयास और प्रयोग करने पड़ते हैं। जोखिम लेना होता है। बहुत सी चीजें काफी पसंद की जाती हैं तो कुछ बहुत से लोगों को पसंद नहीं आती। राहुलजी को अपने विवेक से जो ठीक लगता है वे ट्वीट करते हैं।
क्या सच में राहुल खुद ट्वीट करते हैं?वे इतने अच्छे कवि, फोटोग्राफर.. सब हैं?
जैसे हम लोगों से राय लेते हैं, विचार लेते हैं। क्या बोलना है, कैसे बोलना है। राहुलजी भी ऐसा करते हैं। उनका हमेशा से मानना रहा है कि लोगों से विमर्श करो। यह बहुत जरूरी है। इससे विचार आते हैं।
भाषण देते समय अब राहुलजी कागज नहीं थामते। सोशल मीडिया पर भी वे अपने आप अपडेट करते हैं। लेकिन संपर्क जरूर करते हैं। इसी तरह हमारे कार्यकर्ता भी उन्हें विचार देते हैं। कभी नारे सुझाते हैं, कभी कविता देते हैं। यह साझा प्रयास होता है।
आपने प्रधानमंत्री के लिए अमर्यादित शब्दों का उपयोग किया...
ऐसा नहीं है। वे चोरी करते हैं तो क्या देखते हैं कि वे प्रधानमंत्री हैं। जब चोरी करते हुए उन्हें नहीं लगता कि वे प्रधानमंत्री हैं और उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए तो मुझे ऐसा कहने में क्यों शर्म आनी चाहिए।
आप ही बताइए आज रोजगार नहीं है। अर्थव्यवस्था बदहाल है। जिनके पास मोटा माल है, वही और मालामाल हो रहा है। गरीब दबा जा रहा है। रफाल में भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं? उन्होंने खुद कहा था कि वे चौकीदार हैं। तो अब हम कहेंगे कि नहीं कि चौकीदार ही चोर है।
आपने पटेल की प्रतिमा के सामने खड़े पीएम की तुलना भी गलत तरीके से की..
मैंने तो सिर्फ सवाल किया था। आप लोगों ने देखा और आपको ऐसा लगा। मैंने कुछ नहीं कहा।
आपने इतना प्रत्यक्ष इशारा किया
नहीं। ऐसा नहीं है। हास्य भी कोई चीज होती है। हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इंदिरा गांधी ने अपने ऊपर कार्टून बनाने वाले को पुरस्कृत किया था। सेक्रेड गेम्स में राजीवजी के बारे में क्या-क्या कहा गया, लेकिन राहुलजी ने बयान दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कहने दीजिए।
फिर आपमें और भाजपा के ट्रोल में क्या फर्क रहा?
मैंने जो कहा वह हास्य था। उनके लोग रेप की धमकी देते हैं और उनको मोदीजी फॉलो करते हैं।
इस मामले में तो आपकी पार्टी के नेताओं ने भी कहा कि आपने ठीक नहीं किया।
नहीं। मेरी बहुत से लोगों से बात हुई। सभी ने इसे सराहा है।
खबर चली कि इस घटना के बाद आपको सोशल मीडिया प्रमुख पद से हटा दिया गया?
ऐसा होता तो क्या मैं आपसे बात कर रही होती?
लेकिन आपने अपने परिचय से इसे हटा लिया था...
मेरे ट्विटर पर बहुत स्पैम आ रहे थे। इसलिए मैंने ऐप को डिलीट कर रीलोड किया। उस दौरान मैंने अपना बायो, वेबसाइट का लिंक आदि सभी हटा लिया था। दुबारा यह डालना याद नहीं रहा। लोगों के पास इतना समय है कि इतनी बात का बतंगड़ बना दिया।
लेकिन पार्टी में आपके साथियों की दिलचस्पी इसमें ज्यादा गलती है..
शायद आपकी बात सही हो।
सोशल मीडिया महिलाओं के लिए सुरक्षित हो। इसके लिए आपकी पार्टी क्या कर रही है?
दुर्भाग्य से सोशल मीडिया पर पुरुष ही प्रभावी भूमिका में हैं। यहां ऐसी भाषा का इस्तेमाल होता है। धमकियों का उपयोग होता है। इसलिए महिलाएं पीछे रहती हैं। लेकिन यह हमारी जिम्मेवारी है कि हम यहां महिलाओं सुरक्षित माहौल उपलब्ध करवाएं। ताकि विमर्श में संतुलन आए और उनका नजरिया भी शामिल हो सके। कांग्रेस में हम महिलाओं के मुद्दे उठाते हैं। हमारी पूरी सोशल मीडिया टीम महिलाएं ही चलाती हैं।
#IRC freedom award dinner in Newyork @DMiliband @theIRC raised more than 4.5 million to aid in humanitarian work pic.twitter.com/7e3fDQJdYn
— Divya Spandana/Ramya (@divyaspandana) November 7, 2014
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को काफी बढ़ावा मिल रहा है? इसकी पहचान कैसे हो?
इसी की मदद से मोदीजी चुन कर आ गए थे। अब चार साल में कुछ नहीं किया और इसी के सहारे फिर जीतना चाहते हैं।
अगर कुछ पढ़ कर या देख कर आपके मन में किसी व्यक्ति या समुदाय के बारे में नफरत पैदा हो रही है तो बहुत आशंका है कि वह फेक न्यूज हो। अक्सर लोग ध्रुवीकरण के लिए इसका सहारा लेते हैं।
कोई इसमें पीछे भले हो लेकिन परेहज तो इससे किसी पार्टी को नहीं?
बिल्कुल नहीं। कुछ एक मौके आए हैं जब हमसे चूक हुई, मगर हमने फेक न्यूज का उपयोग कभी नहीं किया। चूक हुई तो उसके लिए तुरंत माफी मांगी और सुधार किया।
ऐसा नहीं लगता कि इन दिनों राजनीति में जनसंपर्क के मुकाबले सोशल मीडिया को ज्यादा तवज्जो मिल रही है?
सिर्फ सोशल मीडिया से चुनाव नहीं लड़े जा सकते। राजनीति में आपको टीवी, रेडियो, रैली, बैठक, जनसभा, पदयात्रा सभी पर ध्यान देना होता है। लेकिन आप डोर-टू-डोर संपर्क पर आप रोज नहीं जाते। दूसरा लोगों का सूचना हासिल करने का तरीका काफी बदला है। अब लोग मोबाइल पर सोशल मीडिया के जरिए सूचना हासिल करना पसंद कर रहे हैं। इसलिए इसको तवज्जो मिलना स्वभाविक भी है।
क्या फिल्म वालों के लिए राजनीति में जगह पाना आसान नहीं होता?
हां, आसान होता है। क्योंकि लोगों के बीच हमारी पहले से एक पहचान होती है। लोग देखने और सुनने आसानी से पहुंच जाते हैं। लेकिन सवाल है कि क्या सिर्फ इसी आधार पर आप चुनाव जीत सकते हैं? इस तरह सिर्फ भीड़ जुटाई जा सकती है। राजनीति में सफल होने के लिए मेहनत करनी होती है।
चुनाव हारने के बाद आप फिर फिल्म में चली गईं। फिल्म नहीं चली तो फिर राजनीति में...
ऐसा नहीं है। 2013 में सांसद बनने के बाद मैंने फिल्म नहीं की है। इस बीच जो फिल्म आई उसके लिए मैंने पहले ही काम किया हुआ था।
तो अब आप पूरी तरह राजनीति में ही हैं?
फिलहाल तो मैं सोशल मीडिया का काम कर रही हूं। आगे मुझे क्या करना है पता नहीं। चुनावी राजनीति को लेकर मेरी बहुत दिलचस्पी नहीं है। लेकिन मैंने जो जिम्मेदारी ली है, उसे पूरा कर रही हूं और करूंगी। मैं राजनीति को ले कर कभी भी बहुत उत्साहित नहीं रही। परिस्थितियों की वजह से चुनावी राजनीति में आई।
बिना मनोयोग के राजनीति में रहना कितना ठीक?
यह ज्यादा अच्छा है। मेरे विचार स्पष्ट हैं।
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