Today and Tomorrow Live

Monday, December 3, 2018

तो इस कारण से एमपी में बन सकती है कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार

भोपाल. सियासत में नेताओं का भाग्य जनता तय करती है। नेता समय-समय पर जनता को भगवान का भा दर्जा देते हैं। इन सबके बीच सियासत से जुड़े कुछ मिथक भी हैं। बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो यहां भी सियासत से जुड़े कई मिथक हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इन दिनों प्रयागराज में कुंभ की तैयारियों में लगे हैं। वहीं, दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में जब भी सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है यहां सत्ता पर बैठी पार्टी की चिंताएं बढ़ जाती है। कारण है सिंहस्थ से जुड़ा एक मिथक जो अभी तक नहीं टूटा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी सिंहस्थ से जुड़ा मिथक सामने आ रहा है क्योंकि महाकाल की नगरी उज्जैन में 2016 सिंहस्थ का आयोजन किया गया था।

क्या है मिथक: ऐसा कहा जाता है कि प्रदेश का जो सीएम सिंहस्थ महाकुभ का आयोजन करता है या तो उससे सीएम पद की कुर्सी छिन जाती है या फिर उसकी पार्टी सत्ता से बाहर हो जाती है। इस बार सिंहस्थ कुभ का आयोजन भाजपा सरकार में हुआ है। शिवराज सिंह चौहान ने सिंहस्थ की तैयारियों के लिए लगातार महाकाल की नगरी का दौरा भी किया था। 2016 सिंहस्थ का आयोजन किया गया था उस समय शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे फिलहाल सीएम वही हैं पर प्रदेश में चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है और परिणाम ११ दिसबंर को जारी होंगे ऐसे में देखना होगा कि क्या इस बार सरकार किसकी बनती है। या फिर यह मिथक बरकारार रहता है। इस मिथक के कारण नेताओं और राजनीतिक पार्टियों मे डर भी रहता है। मध्यप्रदेश में अभी तक पांच बार सिंहस्थ हुए हैं और हर बार यह संयोग रहा है कि किसी ना किसी कारण से वर्तमान मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई या फिर प्रदेश की सत्ता किसी दूसरे दल के पास चली गई।

 

shivraj singh

कब-किसकी कैसे बदली सत्ता: सिंहस्थ का इतिहास बहुत लंबा है। मध्यप्रदेश में अप्रैल-मई 1968 में सिंहस्थ कुंभ पड़ा। इस दौरान गोविंद नारायण सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। लेकिन सिंहस्थ कुंभ के आयोजन के बाद गोविंद नारायण सिंह को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा औऱ उनके हाथों से प्रदेश की सत्ता बदल गई।
मार्च-अप्रैल 1980 में सिंहस्थ हुआ। इस दौरान राज्य में जनता पार्टी की सरकार थी और सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे। लेकिन कुंभ मेले के बाद वो एक महीने तक भी मुख्यमंत्री नहीं रह पाए और उनकी सरकार चली गई।
1992 में सिंहस्थ का आयोजन हुआ और इस दौरान भी भारतीय जनता पार्टी के सुंदरलाल पटवा सीएम थे। बाबरी मस्जिद ढहने के कारण बीजेपी शासित प्रदेशों में 16 दिसंबर 1992 को रातों-रात सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
2004 में सिंहस्थ का आयोजन हुआ लेकिन इसकी तैयारी 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शुरू की। 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव हार गई और भाजपा की सरकार बनी।
बतौर मुख्यमंत्री उमा भारती ने 2004 में सिंहस्थ का आयोजन किया लेकिन उसके बाद वो ज्यादा दिनों तक मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं रह सकीं और 1994 में हुए हुबली दंगा मामले में कर्नाटक की कोर्ट से अरेस्ट वारंट जारी होने के कारण उन्हें 23 अगस्त 2004 को इस्तीफा देना।

2018 में क्या होगा: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 से पहले 2016 में सिंहस्थ का आयोजन हुआ था। इस बार के विधानसभा चुनाव में 75.05 फीसदी वोटिंग हुई है। वोटिंग का बढ़ा हुआ प्रतिशत सरकार के खिलाफ बताया जा रहा है। इस विधानसभा चुनाव में एंटी इनकंबैंसी का भी एक फैक्टर था। अगर भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत होती है तो ये माना जा सकता है कि एक बार फिर से सिंहस्थ का मिथक बरकरार रहता है।

 

क्या है इतिहास: उज्जैन का सिंहस्थ मानक स्नान पर्व के रूप में मनाया जाता है। सिंहस्थ हर 12 साल बाद पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है तब सिंहस्थ पर्व का आयोजन होता है। इस दौरान लोग शिप्रा नदी में स्नान करते हैं। सिंहस्थ पर्व का आयोजन महाकाल की नगरी उज्जैन में किया जाता है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2Rvt2aj

No comments:

Post a Comment

Pages