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Friday, January 4, 2019

बातचीत: पिता का हाथ मुझ पर रहेगा, लेकिन सोच मेरी चलेगी

 

भोपाल। हमारी कोशिश यह नहीं है कि हम भोपाल से नीतियां तय करें। उन्हें नगरीय निकायों पर थोप दें। हमारी कोशिश होगी कि वहां के लोगों से संवाद करें। युवाओं को जोड़ें और जानें कि नगर निगम से लेकर नगर पंचायत तक लोगों की जरूरतें क्या हैं, उनके आधार पर ही नीतियां बनेंगी। हमारी कोशिश है कि सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर को ही विकास का पैमाना नहीं मानें। यह कहना है नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह का।

 

पेश है ‘पत्रिका’ के शैलेंद्र तिवारी से जयवर्धन सिंह की विशेष बातचीत के अंश...

 

दिग्विजय की राजनीतिक विरासत होना आसान बात नहीं है। बरगद के नीचे छोटा पेड़ कैसे बड़ा होता है?
वाकई में बड़ा मुश्किल काम है। एक व्यक्ति जिसने अपने राजनीतिक जीवन में बहुत कुछ किया, उसके करीब पहुंच पाना भी मुश्किल है, लेकिन मुझे उनका बेटा होने का फायदा मिला है। पहला चुनाव मेरा इस बात पर ही रहा कि मैं उनका बेटा हूं। इस बार का चुनाव मेरा पूरी तरह से मेरे काम पर था। यह जीत मुझे मेरे काम पर ही राघौगढ़ की जनता ने दी है। यह उनका भरोसा है, जिसे बरकरार रखना मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। दिग्विजय सिंह की छाया मेरे पर हमेशा रहेगी। मेरी कोशिश यही है कि खुद की सोच पर काम करता रहूं।

 

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जयवर्धन सिंह को संभावनाओं का नेता माना जा रहा है, कितनी चुनौती है?
मेरे पास अनुभव कम है। कई मंत्री 40 साल से कम के हैं, लेकिन हम जो युवा मंत्री हैं वो मध्यप्रदेश के उन युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो 15 से 40 साल के हैं। वह जिस तरह के नेताओं को देखना चाहते हैं, हमारी कोशिश यही होगी कि हम वैसा बनकर दिखाएं। उनके सपनों को पूरा करना ही हमारा दायित्व बनता है। हमें कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारी मिली है, ऐसे में हमें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत होगी।

 

निकायों में भ्रष्टाचार के मामले आए हैं, अफसरों की मनमानी भी दिखाई दी है, क्या करेंगे?
हमने तय किया है कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पुराने मामले जो भी संज्ञान में आएंगे, उनकी जांच कराएंगे। नगरीय निकायों में अफसरों की मनमानी नहीं चलेगी। हमारी कोशिश होगी कि हम लोगों के करीब निकायों को लेकर जाएं।

लोकसभा चुनाव सामने है, ऐसे में कैसे नगरीय निकायों से एक बेहतर संदेश दे पाएंगे?
हर नगर पालिका और पंचायत में बारीकी से देखेंगे। अभी तक नीतियां यहां से बनकर गईं और लागू कर दी गईं। हम इसको उलट देखेंगे, उनकी जरूरतों को देखेंगे और वहां के लोगों और युवाओं से जानेंगे कि आखिर वहां क्या जरूरत है। उसके हिसाब से नीति बनाएंगे।

 

बीआरटीएस सवालों के घेरे में है, क्या भविष्य देखते हैं?
मुझे अभी दस दिन हुए हैं, जल्दबाजी में अभी कोई फैसला नहीं करूंगा। बीआरटीएस इंदौर में फिर भी कुछ सफल हुआ है। वहां पर 60 हजार यात्री हर रोज चल रहे हैं, लेकिन भोपाल में पूरी तरह से फेल रहा है। हमने इस पर चर्चा की है कि भविष्य में इसका क्या होना चाहिए। हमने तय किया है कि हम शहर के प्रबुद्ध लोगों से संवाद स्थापित कर रास्ता निकालने के बारे में सोच रहे हैं कि आखिर कैसे शहरों के परिवहन को और बेहतर बनाया जाए। कैसे बेहतर लिंकेज बनाए जाएं, जिससे परिवहन सुगम हो। फिर भी अगर हम इसको बेहतर नहीं बना पाए तो इसको क्यों रखा जाए, इस पर विचार करेंगे।

 

बीआरटीएस सवालों के घेरे में है, क्या भविष्य देखते हैं?
मुझे अभी दस दिन हुए हैं, जल्दबाजी में अभी कोई फैसला नहीं करूंगा। बीआरटीएस इंदौर में फिर भी कुछ सफल हुआ है। वहां पर 60 हजार यात्री हर रोज चल रहे हैं, लेकिन भोपाल में पूरी तरह से फेल रहा है। हमने इस पर चर्चा की है कि भविष्य में इसका क्या होना चाहिए। हमने तय किया है कि हम शहर के प्रबुद्ध लोगों से संवाद स्थापित कर रास्ता निकालने के बारे में सोच रहे हैं कि आखिर कैसे शहरों के परिवहन को और बेहतर बनाया जाए। कैसे बेहतर लिंकेज बनाए जाएं, जिससे परिवहन सुगम हो। फिर भी अगर हम इसको बेहतर नहीं बना पाए तो इसको क्यों रखा जाए, इस पर विचार करेंगे।

 

क्या प्रदेश में भी दिल्ली की तर्ज पर स्कूल और अस्पतालों का संचालन नगरीय निकायों को करना चाहिए?
इसकी अभी प्रदेश में जरूरत नहीं है। यहां दोनों विभागों के पास बड़ा अमला है। हां, लेकिन हाउसिंग बोर्ड को चिकित्सा और स्कूलों से कैसे जोड़ा जाए, इसके बारे में सोचा जा सकता है। उनके इंफ्रास्ट्रक्चर को कैसे बेहतर बना सकते हैं, इस पर बात हो सकती है।

 

नगरीय प्रशासन का जिम्मा मिला है, भाजपा का राज है... चुनौतियां क्या हैं?
गांवों से लोग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में हमें अपने शहरों की 30 से 40 साल की प्लानिंग करनी होगी। हमारे शहरों में पानी एक बड़ी समस्या है। कई दिनों के अंतराल से पानी मिल रहा है। शहरी परिवहन भी एक बड़ा मसला है। शहरी इलाकों में रोजगार कैसे बढ़े यह भी प्राथमिकता में है। स्मार्ट सिटी मिशन का काम जिस गति से बढऩा था, वह नहीं हुआ। ऐसे में इसकी प्लानिंग भी बड़ा मसला है। यहां पर कैसे बड़े टाइअप किए जाएं। टेक्नोलॉजी अपडेट को कैसे जोड़ा जाए।



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