नई दिल्ली। पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत से सियासी फिजा बदलने लगी है। इस जीत से न केवल भाजपा का विजय रथ रुक गया है, बल्कि इसका असर अब पश्चिम बंगाल में भी दिखाई देने लगा है। 2,000 से ज्यादा टीएमसी के मुसलमान समर्थकों द्वारा कांग्रेस का हाथ थाम लेने से साफ हो गया है कि कम से कम अल्पसंख्यकों में कांग्रेस के प्रति एक बार फिर विश्वास बढ़ा है। हजारों की संख्या में टीएमसी के मुस्लिम कार्यकर्ताओं का कांग्रेस में शामिल होने की घटना से कोलकाता के सियासी गलियारों में इस चर्चा को बल मिला है। इस चर्चा में दम इसलिए भी माना जा रहा है कि सियासी तौर पर इसे ममता बनर्जी के लिए झटका माना जा रहा है।
बंगाल की शेरनी ने तोड़ा भरोसा
तृण मूल कांग्रेस (टीएमसी)के मुस्लिम कार्यकर्ताओं का कहना है कि ममता बनर्जी सरकार भाजपा का डर दिखाकर चुनावी अभियान का ध्रूवीकरण कर रही है। वह जोरदार तरीके से पश्चिम बंगाल मुसलमानों के हित की बात करती हैं लेकिन सच ये है कि जमीन पर सच्चर कमेटी को लागू करने की दिशा में कदम नहीं उठाया गया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में दुर्गा पांडालों के लिए जिस तरह से अनुदान देने की घोषणा की गई उससे साफ है कि ममता बनर्जी सरकार खुद सांप्रदायिक राजनीति में भरोसा करती है। जानकारों का कहना है कि जमीनी स्तर के मुस्लिम कार्यकर्ताओं के टीएमसी छोड़ने से पार्टी के मोराल पर असर पड़ेगा, वहीं कांग्रेस को इस बात की खुशी होगी कि देर से ही सही मुस्लिम समाज का झुकाव अब उनकी तरफ हो रहा है।
कांग्रेस के खिलाफ ममता का थर्ड फ्रंट
हालांकि लोकसभा चुनाव के पांच महीने बचे हैं लेकिन दिल्ली की सत्ता पर अलग अलग दलों के नेताओं की नजर टिकी है। मौजूदा केंद्र सरकार के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कवायद चल रही है। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव गैर कांग्रेस, गैर भाजपा गठबंधन की संभावनाओं को जमीन पर उतारने की कवायद में जुटे हैं। ममता और केसीआर के इस थर्ड से बीएसपी और एसपी की ओर से लगातार दूरी बनाने की वजह से यह सियासी आकार नहीं ले पा रहा है। इसके बावजूद प्रयास जारी है आने वाले दिनों में थर्ड फ्रंट मुहिम में कितना दम है ये भी साफ हो जाएगा।
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