धर्मेन्द्र उपाध्याय. ठाणे
सोशल मीडिया ने हमारे परिवार और संस्कृति को पूरी तरह से जकड़ लिया है और यह हर घर में मर्ज की तरह पसरता ही जा रहा है। इससे सर्वाधिक असर हमारे संस्कारों पर पड़ रहा है, जो परिवारों, सोसायटी और समाजों को प्रभावित करता है। आज यह कथन सर्वविदित है कि संस्कार नाम की चीज नहीं है क्या...। इतना ही नहीं वर्तमान समय में संयुक्त परिवार बिखरता चला जा रहा है। इसकी मुख्य वजह भी सोशल मीडिया ही है। हम सब परेशान हैं, लेकिन इसके बावजूद भी हमारी सोच और आंखें नहीं खुल रही है। हम सभी लोग वर्तमान समय में अपने संस्कार और अध्यात्म से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन जिस तरह से गायत्री मंत्र के रूप में बहुत बड़ी ताकत, उर्जा और स्फूर्ति मिलती है वह हमारे अंदर छुपे तमाम बुराइयों से हमें बचाती है। पत्रिका के टॉक शो में लोगों के यही विचार सामने आए। खासकर आधी आबादी का तो यही मानना है, जो दिन-रात इस समस्या को नजदीक से महसूस कर रही है। महिलाओं ने खुलकर अपने विचार प्रकट किए। इसमें कल्पना मजेफिया, सुमन लता, प्रवीणा वासनी, रश्मी शेंडगे, चंदा, जयश्री, ज्योति गुप्ता समेत एक दर्जन महिलाओं ने मंतव्य दिया। वर्तमान समय में संयुक्त परिवार बिखरता चला जा रहा है।
संस्कार में आहार भी महत्वपूर्ण है
संस्कार में आहार भी महत्वपूर्ण होता है। बच्चे जो मांगते हैं, मां बिना सोचे-समझे वह उसे दे देतीं हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि खानपान हमारे विचार को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसलिए बच्चे की हर इच्छा पूरी करने से पहले सोचें कि वह जो मांग रहा है, उससे उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
- विमला पंचाल
नैतिकता का पाठ अवश्य पढ़ाएं
आज की शिक्षा व्यवस्था से नैतिकता को गायब कर दिया गया है। जब हमने शिक्षा से नैतिकता निकाल दी है, तो कैसे एक बेहतर समाज बनेगा। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षा को लेकर हमारी गंभीरता जरूरी है। स्कूली शिक्षा के साथ नैतिकता की शिक्षा भी अनिवार्य की जानी चाहिए।
- लक्ष्मी राजपूत
सांस्कारिक जीवन की शिक्षा दें
जीवन में संभालने का जरूरी ज्ञान ही हमारे पास नहीं है। हम अपने बच्चों को स्कूल, कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं तो वहां हमें संस्कार और सांसारिक जीवन यापन करने के लिए कुछ भी नहीं बताया जाता। परिवार चलाने का वास्तविक ज्ञान अध्यात्म में है। संस्कार के लिए यह जरूरी है।
- डॉ रेखा वागानी
बच्चों को समाज से जोड़ कर रखें
मेरा मानना है हम सभी के भीतर देवियां हैं। हम भूल गए हैं कि हम मुनियों की संतान हैं। बच्चों को सिर्फ स्कूली शिक्षा देने के साथ ही समाज में मिल-जुल कर रहने की शिक्षा भी अपने बच्चों को देनी चाहिए। जब तक हम अपने बच्चों को अध्यात्म से नहीं जोड़ेंगे आधुनिक चकाचौंध की दुनिया उन्हें प्रभावित करेगी।
- प्रियंका श्रीवास्तव
प्रज्ञा से पहले बच्चों को संस्कार दें
पहले के जमाने में बच्चों को गुरुकुल की शिक्षा में आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती थी। गायत्री परिवार में गर्भावस्था के दौरान संस्कार शुरू किया जाता है और जब बालक गर्भ से बाहर आता है तो उसका बाल संस्कार और बाद में प्रज्ञा में डालते हंै। इस तरह से समाज को सुधारने का काम गायत्री परिवार कर रहा है।
- जागृति गुप्ता
न भूलें, हर मां के अंदर शक्ति है
किसी भी समाज को मां बेहतर दिशा में ले जा सकती है। हर मां के अंदर शक्ति है कि वह अपने बच्चों में संस्कार डालें। मैने देखा है कि समाज में लोग उच्च शिक्षा ले रहे हैं, पर उनमें संस्कार की कमी है। इसलिए परिवारों का विखंडन हो रहा है। समाज नारी को आगे बढ़ाए, यही समाज को सही दिशा में ले जाएंगी।
- सुमन राय
टाइम का बहाना न कर अच्छी किताबों का अध्ययन करें
मुझे ज्यादा जीवन की समझ नहीं है, पर मैं कहती हूं कि अच्छी किताबों का अध्ययन करो तो लोग कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है, लेकिन उनके पास मोबाइल देखने के लिए बहुत टाइम है। गायत्री मंत्र ऐसा सशक्त माध्यम है, जिससे लोगों का जीवन सुखमय और शांति से परिपूर्ण हो सकता है।
- ज्योत्सना पटेल
गर्भ से बच्चों को मिलनी चाहिए संस्कार की शिक्षा
मैं समझती हूं कि गर्भ से ही बच्चों को संस्कार देना शुरू कर देना चाहिए। हमारे भीतर से इमोशन कमजोर पड़ते जा रहे हैं। जिसके चलते संयुक्त परिवार कम हो रहे हैं। हम जब अपने बुजुर्गों के साथ एक संयुक्त परिवार में रहते हैं तो बच्चों में बिना प्रयास के ही संस्कार आने लगते हैं।
- डॉ. तेजश्री काबरा
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