
विकास मिश्रा @ इंदौर. राऊ विधानसभा का गठन 10 साल पहले हुआ था। यहां की जनता दो चुनाव में वोट डाल चुकी है। पहले चुनाव में वोटरों ने भाजपा को, दूसरी बार कांग्रेस को चुना। इस चुनाव में जिले में सबसे अधिक युवा वोटर (18980) इसी विधानसभा में बढ़े हैं। इस सीट की तासीर बदलाव वाली है। यहां के वोटर प्रैक्टिकल हैंं। सिर्फ वादे के दम पर यहां राजनीति नहीं चमकाई जा सकती। जो काम करेगा और जनता के बीच रहेगा उसे चुना जाएगा। नगर निगम और पंचायत चुनाव में भी यही देखने को मिलता है। 2013 में इस सीट से कांग्रेस के जीतू पटवारी 18559 वोटों से जीते थे, लेकिन निगम चुनाव में यहां आठ में से सात वार्ड पर भाजपा का परचम लहराया। 29 पंचायतों में भी कांग्रेस-भाजपा को मिला-जुला प्रतिनिधित्व मिला।
इस चुनाव में कांग्रेस ने जीतू पटवारी को लगातार तीसरी बार मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में जब कांग्रेस का जिले से सूपड़ा साफ हुआ था तब जीतू एकमात्र कांग्रेसी विधायक थे। क्षेत्र में सक्रियता के कारण पार्टी में दूसरा दावेदार सामने नहीं आया। सभी पेनलों में उनका सिंगल नाम था। कांग्रेस से मनोज सूले और शिव यादव की राजनीतिक पृष्ठभूमि है, पर वे फिलहाल जीतू के साथ हैं।
हार को जीत में बदलने की चुनौती...
42 गांवों से सजी इस सीट पर इस बार मधु वर्मा पर दावं खेला है। दो चुनाव में उम्मीदवार रहे जीतू जिराती इस बार वर्मा का चुनाव संचालन कर रहे हैं। 1983 से अब तक तीन बार पार्षद रहे वर्मा के परिजन भी तीन बार इंद्रपुरी के वार्ड से पार्षद रह चुके हैं। उनके अनुभव और क्षेत्र में सक्रियता को देखते हुए पार्टी ने यहां जिम्मेदारी दी। वर्मा के अलावा जीतू जिराती, दिनेश मल्हार और बबलू शर्मा ने भी यहां से दावेदारी की थी, लेकिन पार्टी के सर्वे और सीनियरिटी को देखते हुए वर्मा को मौका दिया। पिछले चुनाव में जिले में सिर्फ यहीं भाजपा हारी। यह सीट छीनने के लिए भाजपा ने युवा मोर्चा की पूरी टीम को झोंका है।
4 विधानसभा क्षेत्रों का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा शमिल
इस विधानसभा के गठन में देपालपुर, इंदौर-4, इंदौर-5 और सांवेर का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा शामिल है। अलग-अलग तासीर वाली विधानसभाओं के टुकड़े जोडक़र बने इस क्षेत्र के वोटरों ने 10 साल में अपनी अलग पहचान बनाई है। अलग-अलग चुनाव में इसका असर भी दिखा है।
इलाके के प्रमुख मुद्दे
1. पीने के पानी की मुख्य समस्या, अधिकांश हिस्सा टैंकरों के भरोसे।
2. सडक़ों की जर्जर हालत, अधूरा एमआर-तीन, गांवों से कनेक्टिविटी नहीं।
3. क्षेत्र में एक भी बड़ा सरकारी अस्पताल नहीं, एमवाय के भरोसे जनता।
4. बायपास से लगी कॉलोनियों में सुरक्षा व्यवस्था नहीं।
पक्ष-विपक्ष के अपने-अपने तर्क
पांच साल से विधायक ने पीने के पानी की समस्या हल करने के प्रयास नहीं किए। क्षेत्र में 42 गांव हैं और वहां जनता बिजली-पानी की समस्या से जूझ रही है। शहरी हिस्से में जहां भाजपा के पार्षद हैं वहां उनके प्रयासों से काम किए गए हैं। विधायक ने कुछ हिस्सों को तवज्जो दी, बाकी उपेक्षित हैं। चुनाव में इसका परिणाम भुगतना होगा।
सुरेंद्रसिंह छाबड़ा, भाजपा पार्षद, वार्ड 74
जिले में एकमात्र सीट पर कांग्रेस जीती थी। भाजपा सरकार ने यहां विकास कार्य रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन विधायक ने काफी काम किए हैं। जनता से जुड़ी समस्या के लिए मोर्चा संभाला है। भाजपा पांच साल निष्क्रिय रही और अब चुनाव के समय वोट मांगने जा रहे हैं। भाजपा को यहां फिर करारी शिकस्त मिलेगी।
चंद्रकला मालवीय, कांग्रेस पार्षद, वार्ड 76
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