भोपाल। लघु कथा समाज के हर मोर्चे पर डटी रहने वाली विधा है। यह देखने में भले ही छोटी हो लेकिन इसका वितान विस्तृत होता है। नट के खेल में रस्सी पर चलने जैसी विधा का नाम लघुकथा है। इस आशय के विचार आज हिन्दी भवन में सुनाई दिए। मौका था मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित लघुकथा प्रसंग का। समिति द्वारा लघुकथा पर एकाग्र इस पहले आयोजन में करीब दस रचनाकारों ने अपनी लघुकथा का पाठ किया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव थी जबकि अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार उषा जायसवाल ने की। मुख्य अतिथि संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि लघुकथा छोटे आकार की होकर बड़ी बात कह जाती है। अध्यक्षता कर रही साहित्यकार उषा जायसवाल ने कहा कि लघुकथा अब पूर्ण विधा का रूप लेती जा रही है। उन्होंने लघुकथा के लिए भोपाल में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। आरंभ में लघुकथा पर परिचयात्मक वक्तव्य देते हुए कांता रॉय ने कहा कि छोटी कहानी और लघु कथा में अंतर है। लघु कथा नट के खेल में रस्सी पर चलने जैसी विधा है। इसका अंत उद्वेलित करने वाला होना चाहिए। अतिथियों का स्वागत रक्षा सिसोदिया ने किया। संचालन गोष्ठी के संयोजक युगेश शर्मा ने किया तथा आभार प्रदर्शन महेश सक्सेना ने किया। गोष्ठी में नीना सिंह सोलंकी, महिमा श्रीवास्तव, कुंकुम गुप्ता,सतीशचंद्र श्रीवास्तव, शशि बंसल, जया आर्य, गोकुल सोनी, सुमन ओबेराय तथा घनश्याम मैथिल अमृत ने लघुकथा का पाठ किया।
जहां शूरवीर हो जन-जन, हर बाला संस्कारी हो, ऐसा विश्वगुरु मेरा भारत है
कलामंदिर ने हिन्दी भवन में किया मासिक गोष्ठी का आयोजन
भोपाल। कलामंदिर ने रविवार को हिन्दी भवन में मासिक गोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गौरीशंकर शर्मा गौरीश ने की। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में युगेश शर्मा और घनश्याम सक्सेना मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी ने किया। वहीं, सरस्वती वंदना प्रियंका राजपूत ने प्रस्तुत की। उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत जहां कलकल बहती संस्कारी नदियां हों, जहां शूरवीर हो जन-जन, हर बाला संस्कारी हो, ऐसा विश्वगुरु मेरा भारत है। अमित जैन सिरफिरा ने वातावरण में हास्य का रंग घोलते हुए मैं क्यों कहूं किसी से कुछ, किसी का नाम लेकर..., जब वो खुद बुला रहे हैं, एक दूसरे को चोर लुटेरा कहकर... पढ़ी।
अगली कड़ी में पंकज जैन पराग ने प्रीत की रीत के अनुबंध किसके नाम करूं, भ्रमर की चाह, गुल की गंध किसके नाम करूं... पेश की। इसके बाद बनारस के मनीष श्रीवास्तव बादल ने फलक अच्छा नहीं लगता, जमीं अच्छी नहीं लगती, जमाने में मुहब्बत की कमी अच्छी नहीं लगती... से खूब तालियां बटोरी। वरिष्ठ रचनाकार हरिवल्लभ शर्मा हरि ने शोहरत मिली क्या आप तो मगरूर हो गए, अहबाब साथ थे जो, सभी दूर हो गए... पेशकर श्रोता मंत्रमुग्ध कर दिया। वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर पटैरिया मधुर ने वीररस से ओतप्रोत रचना गणतंत्र देश का खो ना जाए कुहासे में, धमनियां देश की आज सभी मशाल बने... पेश की।
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