भोपाल. पूर्ववर्ती सरकार में नियमों को ताक पर रखकर चहेतों को मलाईदार पदों से नवाजा गया। हैरत की बात यह है कि अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतों के बावजूद ये अफसर अभी तक पदों पर जमे हुए हैं। इस तरह के दो बड़े मामले इस बार के अंक में पत्रिका एक्सपोज सामने ला रहा है, जिनमें आरोपी अफसरों पर अभी तक सीनियर अफसर आंच नहीं आने दे रहे।
विज्ञापन से चार महीने पहले आवेदन
मध्यप्रदेश माटीकला बोर्ड के सीईओ चन्द्रमोहन शर्मा प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत विगत पांच वर्षों से अधिक समय से कार्यरत हैं। इन्होंने २२ मार्च २०१३ को इस पद के लिए अपना आवेदन प्रमुख सचिव, कुटीर एवं ग्रामोद्योग को प्रस्तुत कर दिया था, जबकि इस पद के लिए विज्ञापन करीब चार माह बाद ०५ जुलाई २०१३ को प्रकाशित हुआ। उनकी प्रतिनियुक्ति में हद दर्जे की अनदेखी की गई। माटीकला बोर्ड सीईओ का पद प्रथम श्रेणी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति से भरा जाना था, जबकि चन्द्रमोहन शर्मा एक स्वशासी संस्थान (होटल मैनेजमेंट एंड टूरिज्म इंस्टीट्यूट, ग्वालियर) में प्रोग्राम असिस्टेंट के तृतीय श्रेणी कर्मचारी के पद पर कार्यरत थे। सीईओ के लिए घनश्याम सिंह संयुक्त संचालक वित्त, एसएस सिकरवार प्रभारी संयुक्त संचालक हथकरघा, अशोक पांडेय सीईओ माटीकला बोर्ड एवं उप संचालक खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी, लेकिन इस कमेटी को दरकिनार कर एनपी माहौर, कुसुम ठाकुर उप सचिव ग्रामोद्योग व अशोक पांडेय उप सचिव खादी बोर्ड की कमेटी बनाकर आनन-फानन में चन्द्रमोहन शर्मा को सीईओ बनाया गया।
चन्द्रमोहन शर्मा के खिलाफ करोड़ों की वित्तीय अनियमितताओं की गंभीर शिकायतें ईओडब्ल्यू में की गईं। १० हजार कुम्हार जाति के हितग्राहियों के प्रशिक्षण के नाम पर ४५ लाख रुपए डकारने, श्री यादें, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, सीएम आर्थिक कल्याण योजना आदि में वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर दुरुपयोग की शिकायतें शामिल हैं। इनका प्रतिनियुक्ति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पता नहीं केस की स्थिति
चन्द्रमोहन शर्मा के खिलाफ ईओडब्ल्यू के एसपी बिट्टू सहगल से इस बारे में बात की गई थी तो उनका कहना था इस केस के बारे में जानकारी नहीं है। पता करके बताएंगे। इसके बाद ईओडब्ल्यू के डीजी और एसपी का स्थानांतरण हो गया। इसके बाद ईओडब्ल्यू में इस केस के बारे में कुछ नहीं पता चल पा रहा।
प्रमुख सचिव अभी तक नहीं देख पाए एमएस की फाइल
भोपाल. मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुछ भी चलता है, बस आपको साधने की कला आनी चाहिए। ऐसा ही मामला सदस्य सचिव की नियुक्ति का है। इस बारे में प्रमुख सचिव पर्यावरण एवं पीसीबी के अध्यक्ष दोनों पर संभाल रहे अनुपम राजन ने १४ अक्टूबर २०१८ को बताया था कि वे फाइल देखकर ही बता पाएंगे कि कहां क्या गलत है और जो भी नियमानुसार होगा, वह किया जाएगा। लगभग चार महीने बीतने के बाद अभी तक पीएस को इतने गंभीर मामले की फाइल देखने की फुरसत नहीं मिली। अब भी उनका कहना है कि समय मिलते ही मामला दिखवाएंगे।
ये है मामला
०४ मार्च २०१४ को पीसीबी में सदस्य सचिव की नियुक्ति की जगह एए मिश्रा के नामांकन पर सवाल उठते रहे हैं। ०५ मार्च २०१४ को लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले ही आनन-फानन में उन्हें सदस्य सचिव बनाया गया। बिना विज्ञापन, सर्च कमेटी, इंटरव्यू आदि नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा किए बिना उनका नामांकन किया गया। वर्ष २०१३ की वरिष्ठता सूची में आरके श्रीवास्तव, पीके त्रिवेदी, वीके अहिरवार, हेमन्त कुमार शर्मा के बाद पांचवे नम्बर पर रहे एए मिश्रा को वेतनमान, वरिष्ठताक्रम, अनुभव आदि को दरकिनार करते हुए एमएस बनाया गया। यही नहीं, स्टेट एन्वायरमेंट असेसमेंट अथॉरिटी मप्र में सदस्य और सदस्य सचिव दो पदों पर काबिज हैं, जोकि गलत है। इसके बाद वरिष्ठता सूची में खेल कर लिया गया और ०१ अप्रेल २०१७ की वरिष्ठता सूची में अच्युत आनंद मिश्रा को गलत तरीके से सबसे वरिष्ठ दर्शाया गया।
०९ मार्च २००३ को एक अग्रणी समाचार पत्र में डिप्टी सेके्रटरी हाउसिंग एंड एन्वायरमेंट की ओर से सदस्य सचिव पद के लिए जारी विज्ञापन में स्पष्ट लिखा है कि एमएस की नियुक्ति तीन वर्ष के लिए की जाएगी। १८ मई २००१ को तत्कालीन चीफ सेके्रटरी केएस शर्मा, सीपीसीबी चेयरमैन दिलीप विश्वास और आवास एवं पर्यावरण विभाग मप्र के प्रिंसिपल सेके्रटरी जेएल बोस की संयुक्त बैठक में यह तय किया गया था कि मिनिस्ट्री ऑफ एन्वायरमेंट एंड फॉरेस्ट और सीपीसीबी के चेयरमैन व मेम्बर सेके्रटरी की तरह ही एमपीपीसीबी के चेयरमैन व मेम्बर सेके्रटरी की नियुक्ति की जाएगी। पीसीबी मेम्बर सेके्रटरी तीन वर्ष की जगह साढ़े चार वर्ष होने पर भी पद पर जमे हुए हैं।
पूर्व में वरिष्ठता के आधार पर बनाए एमएस
मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के इतिहास में केवल डॉ. पीसी सेठ और डॉ. एमएल गुप्ता को नामांकन के माध्यम से सदस्य सचिव बनाया गया। उन्हें वरिष्ठता के आधार पर सदस्य सचिव बनाया गया था, जिसके चलते कोई विवाद नहीं हुआ। किसी जूनियर अधिकारी को यदि नामांकन के आधार पर सदस्य सचिव बनाया जाता है तो यह स्पष्ट किया जाता है कि उससे वरिष्ठ अधिकारी क्यों नहीं बनाए जा सकते। बिना कोई कारण बताए वरिष्ठताक्रम में पांचवे नम्बर निचले अधिकारी को सदस्य सचिव बनाए जाने पर सवाल उठे हैं।
यहां भी हुई गड़बड़
एए मिश्रा की प्रथम नियुक्ति एमपीपीसीबी में २३ अगस्त १९८६ को हुई थी। उस समय मिश्रा द नेशनल इंडस्ट्रियल डवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। एए मिश्रा ने २८ अगस्त १९८६ से ०७ दिसंबर १९८६ तक १०२ दिनों का असाधारण अवकाश स्वीकृत करने का आवेदन दिया था, लेकिन पीसीबी के तत्कालीन प्रशासकीय अधिकारी एचएन खरे ने मप्र सिविल सर्विस (लीव) रूल्स १९७७ के नियम ३१ (२) के अनुसार ९० दिन से अधिक का असाधारण अवकाश अस्वीकृत कर दिया था। खरे ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनकी सेवाएं ०८ दिसंबर से मानी जाएंगी। इस मामले में बाद में क्या लीपापोती की गई, इसकी भी जांच नहीं हुई।
वर्जन
बोर्ड के कई आवश्यक कार्य रहते हैं। समय मिलते ही मामले को देखूंगा।
- अनुपम राजन, प्रमुख सचिव व अध्यक्ष, एमपीपीसीबी
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