इंदौर. प्रख्यात कथक कलाकार और दुनिया में कथक को फैलाने वाले प्रताप पवार पिछले 38 साल से इंग्लैंड में रह रहे हैं। पवार को हाल ही में इंग्लैंड की रानी ने एमबीई यानी मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर सम्मान से नवाजा है। भारत सरकार उन्हें पद्मश्री पहले ही दे चुकी है। गुरुवार को प्रताप पवार इंदौर में थे। इस मौके पर पत्रिका ने उनसे चर्चा की। प्रताप पवार इंदौर के ही हैं। 1958 में क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद वे दिल्ली गए थे। उनका कहना है कि जब उन्होंने नृत्य सीखने की बात कही थी, तब परिवार और समाज में काफी विरोध हुआ था। आज भी कोई लडक़ा जब शास्त्रीय नृत्य सीखना चाहता है, तो रवैया लगभग एेसा ही होता है। पता नहीं क्यों नृत्य को स्त्रियोचित माना जाने लगा, जबकि भगवान शिव स्वयं नटराज हैं और सभी शास्त्रीय नृत्य पुरुष प्रधान हैं। मुझे तो नृत्य के प्रति आकर्षण ही नटराज का पोश्चर देख कर ही हुआ।
भरत नाट््यम सीखना चाहता था
पवार ने कहा, जब इंदौर में था, तब यहां नटराज अरुण और पिल्लई गुरुजी से भरतनाट््यम सीखा था। उस वक्त हमारे गुरु कथक को कोठेवालियों का डांस कहते थे और मेरी भी यही धारणा बन गई थी। जब मेरी बहन ने मुझे दिल्ली के भारती कलाकेन्द्र में बुलाया तो वहां बिरजू महाराज मिले। वहां बिरजू महाराज के चाचा शंभू महाराज, लच्छू महाराज का कथक देखा, तब लगा कि इस नृत्य में कितनी बारीकी है। बिरजू महाराज ने मुझे शिष्य बनाया और गंडा बांधा। बिरजू महाराज ने हजारों शिष्यों को सिखाया है पर गंडा केवल तीन-चार को ही बांधा है। मेरा शरीर भरत नाट्यम के अनुकूल बन चुका था, इसलिए महाराज को मुझे कथक सिखाने में काफी मेहनत करना पड़ी। बिरजू महाराज मुझसे केवल पांच वर्ष ही बड़े थे, इसलिए गुरु होते हुए भी हमारे संबंध मित्रवत थे।
वेस्टइंडीज में प्रधानमंत्री ने रोकना चाहा
प्रताप पवार ने चर्चा के दौरान कहा, 1970 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वेस्टइंडीज में बसे भारतवंशियों के लिए भारतीय शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा शुरू करना चाहती थीं। उन्होंने ही मुझे वेस्टइंडीज जाने के लिए कहा। मैंने आठ साल तक वहां कथक सिखाया। तब कांट्रेक्ट खत्म हो गया तो गयाना के प्रधानमंत्री ने मुझे मुंहमांगी राशि पर वहीं रुकने के लिए कहा, लेकिन तब तक मेरे पास इंग्लैंड से भी ऑफर आ चुका था और मैं इंग्लैंड आ गया।
शास्त्र की शुद्धता से कोई समझौता नहीं
पवार ने कहा, चार दशके से भी ज्यादा समय से विदेश में हूं। दुनिया भर में कथक सिखाया है पर कभी शास्त्र के साथ समझौता नहीं किया। नवाचार कई किए, लेकिन शास्त्र की सीमाओं में रहकर। ओडिसी से लेकर स्पेनिश फ्लेमैंको के साथ भी कथक किया, लेकिन शास्त्र नहीं छोड़ा।
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