भोपाल। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव का ट्रेंड अजब रहा। अब तक हुए लोकसभा चुनावों को देखें तो स्पष्ट होता है कि चुनावी लहर में यहां मतदान का प्रतिशत बढ़ा। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मतदान वर्ष १९९८ में दर्ज किया गया। इसका लाभ भाजपा को मिला। भाजपा ने मध्यप्रदेश में ४० में से २९ सीटों पर जीत मिली, जबकि कांग्रेस को मात्र ११ सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस को लगातार नुकसान ही उठाना पड़ा।
मध्यप्रदेश के २८ सालों के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में मतदान प्रतिशत कभी ६० प्रतिशत से अधिक नहीं रहा। वर्ष २०१४ में मोदी लहर में भी मध्यप्रदेश में ६१.६० प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया जबकि पूरे देश में यह मतदान प्रतिशत ६६.४ प्रतिशत दर्ज हुआ था। मोदी लहर का असर ही था कि पिछले चुनाव के मुकाबले मध्यप्रदेश में मतदान के प्रतिशत में १० फीसदी का इजाफा हुआ। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि वर्ष २००९ के चुनाव में यह मतदान प्रतिशत मात्र ५१.१६ प्रतिशत हुआ था।
अब तक का सबसे कम मतदान -
वर्ष १९९१ में हुए लोकसभा में चुनाव में अब तक का सबसे कम ५५.८८ प्रतिशत मतदान हुआ। जबकि मध्यप्रदेश में यह मतदान प्रतिशत ४४.३५ दर्ज किया गया। दसवीं लोकसभा के लिए यह मध्यावधि चुनाव था, क्योंकि पिछली लोकसभा को सरकार के गठन के सिर्फ १६ महीने में भंग कर दिया गया था। चुनाव विपरीत परिस्थितियों में हुए थे। मण्डल आयोग की सिफारिशें लागू होने और राम जन्म भूमि मस्जिद विवाद छाया रहा। देशभर में हिंसा और विरोध प्रदर्शन हुए। मध्यप्रदेश भी इससे अछूता नहीं रहा। भाजपा ने इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया। जाति के आधार पर वोट बंटा। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, भाजपा दूसरे और जनता दल तीसरे नम्बर पर रही। त्रिशंकु सरकार बनी। पीवी नरसिंहराव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
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मध्यप्रदेश में कब कितनी हुई वोटिंग -
वर्ष - वोटिंग
2014 - 61.60
2009 - 51.16
2004 - 48.09
1999 - 54.85
1998 - 61.72
1996 - 54.06
1991 - 44.35
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