
भोपाल. मध्यप्रदेश के 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को बड़ी जीत मिली है। भाजपा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस के खाते में 9 सीटें गईं। भाजपा की जीत से ज्यातिरादित्य सिंधिया को बड़ी राहत मिली क्योंकि सिंधिया भी मार्च के बाद मध्यप्रदेश की सियासत के प्रमुख चेहरे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद बढ़ा या घटा है क्योंकि सिंधिया समर्थक कई नेता चुनाव हार गए हैं। इनमें से सबसे चौकाने वाला नाम मंत्री इमरती देवी का है। सिंधिया ने जब पार्टी बदली थी तब उनके साथ 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी। इनमें 19 सिंधिया समर्थक थे जबकि तीन को भाजपा ने तोड़ा था। ये तीन थे- एदल सिंह कंसाना, बिसाहू लाल और हरदीप डंग।
दांव पर थी प्रतिष्ठा
सत्ता गिरा कर कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद सबसे बड़ा सवाल ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख पर था। भाजपा की जीत से सिंधिया की साख तो बच गई, लेकिन 2018 में आज के उपचुनाव वाली 28 में से 27 सीटें कांग्रेस के पास थीं। अब सिंधिया के भाजपा में होने के कारण उपचुनाव में भाजपा के खाते में 19 सीटें आ गईं। इससे उन्हें सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिल सकती है। कांग्रेस के लिए भी सिंधिया अब बड़ी चुनौती होंगे। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर पूर्व सीट पर वोट डाला लेकिन वही सीट भाजपा जीत नहीं पाई। यहां से सिंधिया के करीबी मुन्नालाल गोयल चुनाव हार गए। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का प्रभाव मुरैना में माना जाता था लेकिन मुरैना जिले की 3 सीटों पर भी कांग्रेस ने कब्जा जमाया।
भाजपा की जीत के कारण क्या
शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता, ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरी तरह चुनाव में खुद को झोंकना, संगठन का सही प्रबंधन, गद्दार फैक्टर को चुनाव के अंतिम सप्ताह में बेहतर काउंटर और सत्तारूढ़ दल होने का फायदा।
सिंधिया गुट के ये नेता चुनाव हारे
दिमनी से गिर्राज दंडौतिया
डबरा से इमरती देवी
मुरैना से रघुराज सिंह कंसाना
ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल
गोहद से रणवीर सिंह जाटव
करैरा से जसवंत जाटव
सिंधिया का कद बढ़ा या घटा?
मध्यप्रदेश की मौजूदा विधानसभा सीट में 229 है। कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के इस्तीफे के कारण एक सीट खाली है। ऐसे में पूर्व बहुमत के लिए 115 सीटों की जरूरत है। अगर सिंधिया गुट को छोड़ दें तो भाजपा अब 107+6=113 हो गई है। उसे 2 की ही जरूरत होगी। अन्य सात में से एक निर्दलीय और बसपा के दो विधायक भाजपा के पक्ष में हैं। बाक़ी भी विरोधी तो नहीं ही हैं। फिर भी सरकार सिंधिया गुट के बिना कम्फर्ट में नहीं रहेगी। यही वजह है कि सिंधिया का कद भाजपा में बढ़ गया है। अब अगले विस्तार में सिंधिया को केंद्र में मंत्री पद मिलने की संभावना भी बढ़ गई है। भाजपा सिंधिया के चेहरे का इस्तेमाल अन्य राज्यों में कर सकती है।
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