लखनऊ. बहुत दिन रह लिए दुनिया के सर्कस में तुम ऐ राना/चलो अब उठ लिया जाए, तमाशा खत्म होता है। दुनिया को तमाशा बताने वाले उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राना आखिर रविवार की रात करीब साढ़े 11 बजे इस दुनिया को अलविदा कह गए। देर रात लखनऊ के पीजीआइ अस्पताल में दिल का दौरा पडऩे से उनका निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे। राना पिछले कई महीनों से किडनी और दिल से जुड़ी बीमारियों से पीडि़त थे। राना का अंतिम संस्कार सोमवार को रायबरेली में होगा। उनका जन्म 26 नवंबर, 1952 को रायबरेली में हुआ था। राना की बेबाकी उनकी कविताओं में भी झलकती थी। राना की हिंदी और उर्दू दोनों में शानदार पकड़ थी। राना उत्तर प्रदेश के राजनीतिक में सक्रिय थे। उनकी बेटी सुमैया अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्य हैं। राना अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहे। उन्होंने अफगानिस्तान में ताबिलान का समर्थन किया था। उन्होंने तालिबानियों के तुलना महर्षि वाल्मीकि से की थी। इसके बाद विवाद शुरू हो गया था।
लौटा दिया था साहित्य अकादमी पुरस्कार
राना ने उर्दू साहित्य के लिए मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार को 2015 में यह कहकर लौटा दिया था कि देश में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। उन्होंने कसम खाई थी कि वे कभी सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे।
मेरे हिस्से में मां आई
मुनव्वर राना ने मां पर शायरी कर अपना अलग मुकाम बनाया। जब वे मां पर शायरी पढ़ते तो लोगों की आंखें भर आती थी। उन्होंने लिखा कि किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई। मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई। इसके साथ ही मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना.. जैसी शायरी कर राना ने सदा के लिए लोगों के दिलों में जगह बना ली।
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