नई दिल्ली. कृत्रिम मेधा (एआइ) तकनीक का इस्तेमाल अस्पतालों में भी बढ़ रहा है। गुडग़ांव के एक निजी अस्पताल में पल्मोनरी एम्बोलिज्म से पीडि़त 62 साल के एक मरीज की एआइ तकनीक के जरिए सफल सर्जरी की गई। इस बीमारी में फेफड़े में ब्लड क्लॉट होता है। अस्पताल के चेयरमैन और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहान का दावा है कि फेफड़े से ब्लड क्लॉट हटाने के लिए देश में पहली बार एआइ तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
देशभर में हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण शरीर में बनने वाले ब्लड क्लॉट भी हैं। इनकी वजह से ब्लड का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाता। डॉ. नरेश त्रेहान के मुताबिक अस्पताल में अन्य बीमारियों के इलाज के लिए पिछले साल जुलाई में एआइ तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया था। अब तक इसके जरिए 25 मरीजों की सर्जरी की जा चुकी है। इस प्रक्रिया में कम से कम खून बहता है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है। मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती। इस तकनीक के जरिए पल्मोनरी एम्बोलिज्म से पीडि़त मरीजों का बेहतर इलाज संभव हो सकेगा।
सीने और धमनियों को खोलना जरूरी नहीं
पल्मोनरी एम्बोलिज्म बीमारी में ब्लड क्लॉट फेफड़ों की धमनी में रक्त के प्रवाह को ब्लॉक या बंद कर देता है। डॉ. नरेश त्रेहान का कहना है कि एआइ तकनीक के जरिए सीने और धमनियों को बिना खोले ब्लड क्लॉट को आसानी से बाहर निकाला जा सकता है। इस प्रक्रिया में 15 मिनट का समय लगता है। पहले इसके लिए बड़ा ऑपरेशन करना पड़ता था और खतरे की आशंका काफी ज्यादा रहती थी।
...ताकि मरीज देख सके पूरी प्रक्रिया
सर्जरी में शामिल डॉ. तरुण ग्रोवर ने बताया कि मरीज को सांस में तकलीफ, पैर में दर्द और सूजन के बाद इमरजेंसी में लाया गया था। हमने एआइ तकनीक के जरिए उसके लंग से ब्लड क्लॉट हटाए। इसके बाद उसे दर्द और सूजन से तुरंत राहत मिली। सर्जरी की यह प्रक्रिया लोकल एनेस्थीसिया देकर की जाती है, ताकि मरीज पूरी प्रक्रिया देख सके।
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