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Wednesday, March 13, 2019

लोकसभा चुनाव 2019 में छोटे दलों का हो सकता है बड़ा गठबंधन

जितेन्द्र चौरसिया, भोपाल. सूबे में 22 साल से लोकसभा चुनाव में हाशिए पर पड़ी तीसरी शक्ति इस बार ताकत जुटाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, नए संगठन सपाक्स के बावजूद तीसरे मोर्चे के दल बेदम से हैं। विधानसभा चुनाव की शिकस्त से सबक लेकर आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव लडऩे से हाथ खड़े कर चुकी है।

दरअसल,1996 के बाद तीसरी शक्ति से केवल 2009 में बसपा ने एक लोकसभा सीट जीती थी। इसके अलावा हर बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर रही। दिग्विजय शासनकाल के बाद से तीसरी शक्ति लोकसभा सीटों से कम हुई तो भाजपा ने इसे पूरी तरह बाहर कर दिया। पिछले 22 सालों में कोई निर्दलीय सांसद तो बना ही नहीं। इसके पहले हर लोकसभा चुनाव में एक-दो सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी होते थे।

मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी का चुनाव लडऩा अभी तय नहीं है। अभी हम विचार-विमर्श कर रहे हैं। जल्द ही तय हो जाएगा।
- आलोक अग्रवाल, प्रदेश संयोजक, आम आदमी पार्टी

इस बार ऐसे हालात

सपाक्स पार्टी
सपाक्स ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीति में कदम रखा था। अब सपाक्स प्रमुख हीरालाल त्रिवेदी ने सवर्ण आंदोलन के लिए काम करने वाले देश के कई संगठनों को मिलाकर समानता मंच बनाया है। कुछ दल इसी के बैनर तले चुनाव लड़ेंगे।

आम आदमी पार्टी
विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त के बाद आम आदमी पार्टी प्रदेश में लोकसभा चुनाव लडऩा नहीं चाहती। पार्टी दिल्ली, हरियाणा, गोवा और पंजाब में ही चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। मध्यप्रदेश के नेता भी दिल्ली जाकर पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।

बसपा-सपा-गोंगपा

बसपा ने लोकसभा चुनाव के लिए दो प्रत्याशी घोषित किए हैं। सपा और गोंगपा ने अभी तक कोई प्रत्याशाी घोषित नहीं किया है। तीनों दल लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। उत्तर प्रदेश से सटी सीटों पर 1996 से पहले की ताकत पाने बसपा-सपा जोर-आजमाइश कर रही हैं।

सारे गणित-मुद्दे प्रमुख दलों के कब्जे में

अजा-जजा, सवर्ण और ओबीसी आधारित वाले तीसरे मोर्चे के दल सियासी मुकाम हासिल नहीं कर सके। बसपा-सपा और गोंगपा अजा-जजा व ओबीसी आधारित राजनीति करते हैं। इसी तरह सपाक्स ने सवर्ण वर्ग आधारित राजनीति की। अब लोकसभा चुनाव से सपाक्स को उम्मीदें हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी ने युवाओं व एनजीओ पर फोकस किया। ये दोनों वर्ग प्रदेश में मुख्य वोटर्स हैं, लेकिन पार्टी इन्हें नहीं लुभा पाई। पूरा सियासी गणित कांग्रेस और भाजपा के कब्जे में है।

ये हैं असफलता की मुख्य वजह

- क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव क्षेत्र सीमित रहता है
- मुद्दे होने के बावजूद ये दल उन्हें भुना नहीं पाते हैं
- उत्तर प्रदेश से सटी सीटों पर असर, लेकिन वहां बार-बार सत्ता बदलना
- संसाधन, आर्थिक स्थिति, बूथ-मैनपॉवर में कमजोर
- प्रभावशील चेहरों और लीडर का अभाव
- प्रमुख दलों के वर्चस्व में खो जाना
- रणनीति, प्रबंधन व मॉनिटरिंग का पार्टियों में अभाव



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