
भोपाल/ एक तरफ जहां दुनियाभर की तरह मध्य प्रदेश भी कोरोना से जूझ रहा है, वहीं सरकार द्वारा प्रदेश के हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ सेवाएं देने का दावा किया जाता है। लेकिन, हकीकत में मध्य प्रदेश की स्वास्थ सेवाओं की हालत बेहद दयनीय है। कोरोना से इतर अगर आम स्वास्थ सेवाओं की ही बात करें, तो प्रदेश में प्रति 2500 की आबादी पर सिर्फ 1 डॉक्टर की व्यवस्था है, यानी 10000 पर सिर्फ 4। चौकाने वाली बात ये है कि, नर्स और अन्य सहयोगी स्टाफ की संख्या प्रदेशभर में सिर्फ 8 है।
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क्या कहता है WHO?
डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन को मानें तो, प्रदेश में कम से कम प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर तो होना ही चाहिए। लेकि, भारत में औसतन 1,445 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है। जबकि, उत्तर-पूर्वी राज्यों में 500 लोगों पर एक डॉक्टर है, यानी ये वो राज्य हैं, जहां की स्वास्थ व्यवस्थाओं को डब्ल्यूएचओ के नियमानुसार औसत माना जा सकता है। लेकिन, अगर आगर बात मध्य प्रदेश की करें, तो यहां की स्वास्थ व्यवस्थाओं को बद से बदतर कहा जा सकता है।
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यहां हालात औसत लेकिन...
वहीं, अगर मध्य प्रदेश के अलावा देश के सदर्न राज्यों की बात करें तो, केरल में प्रति 125 लोगों पर एक नर्स या सहयोगी मेडिकल स्टाफ की तैनाती है। ये जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा राज्यों के बजट की स्वास्थ्य सुविधाओं से तुलना करने पर तैयार ताजा रिपोर्ट स्टेट फाइनेंस : ए स्टडी ऑफ बजट ऑफ 2020-21 में दी गई है। इसके मुताबिक, मध्य प्रदेश में राज्य सकल घरेलू उत्पाद (SGDP) की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च सिर्फ 1.3 फीसद मात्र ही है। इस हिसाब से अगर देखा जाए तो, प्रदेश में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च सिर्फ 1284 रुपय ही है।
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