
भोपाल. दीपावली सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि उत्सवों का पुष्पगुच्छ है। प्रदेश के कोने-कोने में दीपपर्व के पांच दिन बेहद विशेष माने जाते हैं। धनतेरस खरीदी और रूप चौदस विशेष स्नान-दान, दीपावली रोशनी, गोवर्धन गोवंश पूजन और दूज पर भाई-बहन के रिश्ते की पहचान है। हालांकि इसके साथ ही अंचल और क्षेत्र विशेष में कई ऐसी परंपराएं होती हैं जो सदियों से उनकी पहचान बनी हैं। प्रदेश की पहचान इन्हीं परंपराओं पर पत्रिका ने यह विशेष सामग्री जुटाई है। मड़ई मेले, देवारी पाई, मोनिया नृत्य और गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध इसी उत्सव का हिस्सा हैं।

शाजापुर
पूर्वजों का करते हैं तर्पण
गुर्जर समाज यहां वर्षों से अनूठी परंपरा मनाता है। दीपावली पर समाजजन इकट्ठा होकर पूर्वजों का तर्पण करते है। शनिवार को मक्सी नगर के पास स्थित तालाब पर तर्पण होगा। समाजजन लोकगीत गाते हुए नदी या तालाब पर पहुंचते हैं और पूजन पाठ-धूप ध्यान देकर अपने पूर्वजों को निमित्त करते हैं। यहां पूर्वजों से वर्ष भर में जाने अनजाने में हुए अपराधों की क्षमा भी मांगी जाती है।

चित्रकूट
कृष्ण को मिलीं थी अपनी खोई हुईं गायें, तब से खुशी में मनाते हैं जश्न
धर्मनगरी चित्रकूट में दीपदान मेला के दूसरे दिन परीवा को देवारी पाई नृत्य काफी प्रसिद्ध है। नटवर विषधारी श्रीकृष्ण की लीला पर आधारित लोकनृत्य में युवा-बाल मयूर पंख सहित डंडे लेकर नृत्य करते हैं। स्थानीय जन इसे मौनिया नृत्य कहते हैं। इस दौरान पूरा मेला क्षेत्र मयूरी नजर आता है। मौनियों की टोली मोर पंख और लाठी के साथ नृत्य करती है।
क्या है मान्यता
मान्यता है कि श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे थे। तब उनकी सारी गायें कहीं चली गईं। दुखी होकर श्रीकृष्ण मौन हो गए। भगवान कृष्ण को मौन देख ग्वाल गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर आए। तब कृष्ण ने मौन तोड़ा और उत्सव की परंपरा बनी।

शिवपुरी: मौन रहकर करते हैं नृत्य
शिवपुरी के पिछोर और खनियांधाना में बरसों से प्राचीन 'दीवारी नृत्यÓ की परंपरा चल रही है, जिसमें 12 लोगों का नाचने वाला समूह दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर 12 गांव में नृत्य करने जाता है। टीम में शामिल लोग किसी दूसरे से बात नहीं करते, बल्कि मौन व्रत रखकर नृत्य करते हैं। 12 साल बाद यह टीम उसी मंदिर पर अनुष्ठान करती है, जिस गांव के मंदिर से शुरुआत होती है। युवा राधा-कृष्ण का वेष धरते हैं।

देवास
गोवर्धन में लेटाए जाते हैं बच्चे ताकि रहें स्वस्थ और निरोगी
देवास. दीपावली के अगले दिन प्रतिपदा (पड़वा) यानी गोवर्धन पूजा के दिन गवली समाज में सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है। इस दिन समाज की महिलाएं सुबह गोबर से गोवर्धन बनाती हैं। इसके बाद पुरुष पूजा-अर्चना करते हैं। मंगल गीत गाते हुए गोवर्धन की परिक्रमा की जाती है। इसके बाद समाज के छोटे बच्चों को गोबर से बने गोवर्धन के ऊपर लेटाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे स्वस्थ और निरोगी रहते हैं। गोवर्धन पूजन के दौरान आतिशबाजी का दौर भी चलता है। एक-दूसरे के घर जाकर प्रसाद बांटा जाता है।

गौतमपुरा
कई हो चुके हैं घायल, फिर भी हिंगोट युद्ध देखने जुटते हैं हजारों लोग
गौतमपुरा. इंदौर से ६० किमी दूर गौतम ऋषि की पावन नगरी गौतमपुरा हिंगोट युद्ध की प्राचीन परंपरा है। गोवर्धन के दिन 'तुर्रा और कलंगी कहते हैं के बीच इस अग्निबाण युद्ध को देखने 20 हजार से अधिक दर्शक पहुंचते हैं। इस युद्ध में कई घायल हो चुके हैं। प्रशासन काफी मुस्तैद रहता है।
ऐसी है परंपरा: दोनों दल में 50 से 60 योद्धा आमने-सामने होते है। दोपहर के तीन बजते ही योद्धा अपने घर से मैदान की ओर निकलते हैं। भगवान देवनारायण के दर्शन करने के बाद 5 बजे से संकेत मिलते ही दोनों समूह एक दूसरे पर राकेट की तरह चलने वाले हिंगोट बरसाते हैं। हिंगोट के सूखे फलों में भरी बारूद इस विशेष हथियार को बहुत घातक बना देती है।

ओरछा
श्रीरामराजा मंदिर के दीपों से रोशन होता है पूजन का दीया
ओरछा. श्रीरामराजा सरकार की नगरी में मंदिर से मिलने वाले दीपक लेकर लोग घर जाते हैं और उसी दीपक से पूजन के दीपकों को प्रकाशमान किया जाता है। श्रीराम को यहां पर राजा के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में लक्ष्मी पूजन के बाद पुजारी मंदिर के बाद लाकर 108 दीपक सजाते हैं। इसके बाद नगर के लोग मंदिर दर्शन करने जाते हंै और यहां से दीपक लेकर अपने घर आते हैं।

कटनी: बकरे की मूर्ति की विशेष पूजा
ग्राम रोहनिया में प्रदेश का इकलौता बकरे का मंदिर है। हर दीपावली पर्व पर हर वर्ष बकरे की मूर्ति की विशेष पूजा होती है। युवा पूजा उपरांत प्राणियों की रक्षा का संदेश देते हैं।
इटारसी में लगाते हैं केले के तोरण
इटारसी में घरों और दुकानों के मुख्य द्वार पर केले के पेड़ का तोरण द्वार सजाने की परंपरा है। पंडित प्रभात शर्मा कते हैं कि केले के पेड़ में भगवान नारायण का वास माना जाता है।
मंडला 1 दिन पहले मनाते हैं दिवाली
मंडला निवास ब्लॉक से 40 किमी दूर 900 की आबादी वाले ग्राम धनगांव में एक दिन पहले दिवाली मनाई जाती है। पुरखों की बनाई गई इस परंपरा को वे ग्रामीण आज भी तोडऩा नहीं चाहते।

रिंगनोद: ऊपर से गुजरती हैं गायें
धार. राजगढ़ मार्ग पर स्थित जवखेड़ी में गाय गोहरी पर्व रविवार को मनाया जाएगा। पर्व पर मन्नत धारियों के ऊपर से बड़ी संख्या में गाय गुजरेंगी। रंग-बिरंगे रंगों और मोर पंख से सजाकर गायों को गली में छोड़ दिया जाता है। गायों के झुंड के सामने मन्नतधारी मन्नत पूरी होने के बाद जमीन पर लेट जाते हैं।
मवेशियों के साथ तोड़ते हैं उपवास
मंडला. आदिवासी समुदाय गौड़ और बैगा में मौनी व्रत का विशेष महत्व है। युवा मवेशियों के साथ जंगल निकल जाते हैं। दिनभर मौन व्रत रहकर मवेशियों के साथ दिन गुजारते हैं। शाम को उपवास भी साथ तोड़ते हैं।
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